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राजधानी में अलग-अलग सतरंगी रिवाज से रौशन होती है दिवाली

लखनऊ। दिवाली की रौनक हर जगह नजर आ रही है। कोई इस त्योहार के लिए मिट्टी के डिजाइनर दीये व गणेश-लक्ष्मी खरीद रहा है तो कोई गुझिया बनाने और कालीजी की पूजा की तैयारियों में व्यस्त है। खुद में कई डिफरंट कल्चर समेटे लखनऊ में दिवाली भी अलग-अलग अंदाज में मनाई जाती है। इनके सेलिब्रेशन का तरीका भले ही अलग हो लेकिन सबका मकसद खुशियां पाना ही है। आइए जानते हैं कि लखनऊ में बंगीय, मराठा, पंजाबी, जैन जैसे कई समाज के लोग किस तरह अपनी दिवाली सेलिब्रेट करते हैं। इस बार दीपावली 31 अक्टूबर को मनायी जोयगी।

बंग समाज करता है कालीजी की पूजा:


मां दुर्गा के पूजन के बाद बंगीय समाज दीपावली पर कालीजी की पूजा करता है। मदन मोहन मालवीय मार्ग निवासी इनाक्षी घोष सिन्हा कहती हैं कि हमारे यहां धनतेरस पर कुबेर की पूजा की जाती है। उस दिन गोबर को पवित्रता और धान को सम्पन्नता के रूप में पूजा जाता है। छोटी दिवाली कालीजी की पूजा का पहला दिन होता है। इसके लिए घर की महिलाएं चंदन, सिंदूर और काजल की हाथ से चौदह बिंदियां मुख्य दरवाजे पर लगाती हैं, ताकि नकारात्मकता से घर के सदस्य बचे रहें। इस दिन लोग मीठे दही में चिड़वा डालकर खाते हैं। साथ ही 14 तरह की साग वाली सब्जियां तैयार करते हैं। इस दिन पालक का साग, मूली, बैगन, सेम, आलू से तैयार चढ़चरी की सब्जी बनाकर काली मां को उसका भोग लगाया जाता है। छोटी दिवाली को देर रात से शुरू हुई काली मां की पूजा अगले दिन बड़ी दिवाली तक जारी रहती है। मां काली को चढ़े भोग को बड़ी दिवाली पर प्रसाद के रूप बांटा जाता है।

मराठों में है गुझिया की परंपरा:
महाराष्ट्र में दीपावली पर गुझिया का चलन है। राजेन्द्र नगर निवासी सुरेश विष्णु महादाने ने बताया कि जिस तरह होली पर लोग गुझिया बनाते हैं, उसी तरह मराठा समाज के लोग दीपावली पर नारियल सूजी और मेवे की गुझिया बनाते हैं। इसे करंजी कहते हैं। इन गुझियों को खासतौर पर पोस्ते में लपेटकर तैयार किया जाता है। छोटी दिवाली पर मराठा समाज के पुरुष सुबह उबटन लगाकर स्नान करते हैं। इसके बाद हनुमानजी का पूजनकर फलाहार और मिठाई खाई जाती है। शाम को महिलाएं तुलसी और मुख्य दरवाजे पर दीया रखती हैं। बड़ी दीपावली पर गणेश-लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन होता है। इस दौरान धनतेरस पर जो वस्तु खरीदी जाती है, उसका सोने-चांदी संग पूजन किया जाता है। दरवाजे को तोरण से सजाया जाता है। इस मौके पर गुझिया अंदरसे लड्डू संग नमकीन में चकली, चिड़वा का भगवान को भोग लगाया जाता है। अगले दिन गोवर्धन पर्व पर पति के स्नान के बाद पत्नी उनकी आरती करके पूजा करती हैं।

पर्वतीय समाज करता है यम की आराधना:
पर्वतीय समाज में गोवर्धन पूजन से पहले यम पूजन की परंपरा है। उत्तराखंड महापरिषद के अध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ठ के अनुसार, धनतेरस पर यम पूजन होता है। घर के दरवाजे पर लाल सफेद रंगोली बनाई जाती है। घर में जितने सदस्य होते हैं, उतने दिए रोशन कर पूजन किया जाता है। बड़ी दीपावली पर अनाज दान का खास महत्व है इसलिए सुबह थाली में चावल पर दीया रोशन कर दान किया जाता है। शाम को लक्ष्मी रंगोली संग महालक्ष्मी की पूजा होती है। गोवर्धन पूजा पर गाय की पूजा की जाती है। इसमें गाय के सींग पर तेल लगाया जाता है और चावल के आटे की छापे गाय की पीठ पर लगाकर उसके स्वस्थ रहने की कामना की जाती है।

महावीर स्वामी की याद में होती है पूजा
चौक जैन समाज के मुख्य संरक्षक कैलाश चन्द्र जैन बताते हैं कि जैन धर्म के 24वें तीर्थांकर महावीर स्वामी का कार्तिक अमावस्या पर मोक्ष निर्वाण हुआ था इसलिए दीपावली पर खासतौर से भगवान महावीर स्वामी की पूजा की जाती है। उन्हें मोक्ष निर्वाण लड्डू चढ़ाया जाता है। इस मौके पर सबसे ज्यादा बूंदी के लड्डू का चलन है। इससे पहले धनतेरस पर कुबेरजी की पूजा होती है। भाईदूज पर बहनें भाई के अलावा भाभी को भी रक्षा सूत्र बांधती हैं।

सिख समाज मनाता है बंदी छोड़ दिवस
लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा बताते हैं कि बड़ी दीपावली पर हमारे समाज के लोग घरों पर दीप जलाते हैं और आतिशबाजी करते हैं। इसका कारण बंदी छोड़ दिवस होता है। दरअसल, इस दिन छठे गुरु हरगोविन्द साहेब ग्वालियर की जेल से छूटे थे। उन्होंने अपने संग 52 राजाओं को भी रिहा करवाया था इसलिए उन्हें बंदी छोड़ दाता के रूप में जाना जाता है। उनके अमृतसर लौटने पर सिख समाज ने दीयों को रोशन कर अपनी खुशी का इजहार किया था। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष दीवान होता है, जिसमें आई संगत शबद कीर्तन संग लंगर छकती है। घर पर लोग खीर, मिठाई, हलवा आदि बना कर मेहमानों का स्वागत करते हैं।

सिंधी समाज में होती है हटरी पूजा
ऐशबाग की नंदनी मोतियानी ने बताया कि सिंधी समाज में धनतेरस पर सोने, चांदी संग पीतल की वस्तुएं खरीदी जाती हैं। उस दिन सात दीये रोशन किए जाते हैं। छोटी दीपावली पर 14 दीये रखकर गणेश संग कुबेर और लक्ष्मीजी की पूजा होती है। इसमें चांदी के सिक्के को दूध से नहलाकर उसकी पूजा करते हैं। सिंधी समाज में इस दिन खासतौर से कराची हलवा बनाया जाता है। इसके अलावा नारियल, चने की दाल, ड्राई फ्रूट्स, लइय्या, तिल और खसखस संग गुड़ के बड़ा की मिठाई से मेहमनों का स्वागत किया जाता है। बड़ी दीपावली पर सुहागिनें हटरी की पूजा करती हैं, जो मायके से आती है। अब मिट्टी के अलावा चांदी और लकड़ी की भी हटरी आ रही हैं। दिवाली के बाद 15 दिवसीय कार्तिक पूजा शुरू हो जाती है।

भार्गव समाज में गुझियों का चलन
हुसैनगंज की श्वेता बताती हैं कि इस दिन भार्गव समाज धनतेरस पर कुबेर की पूजा करता है। बड़ी दीपावली पर हटरी रखकर पूजन करते हैं। लक्ष्मी-गणेश को नए आभूषण पहनाए जाते हैं। इस मौके पर जिमिकंद और गुझिया बनाई जाती है। साथ ही उबले हुए सिंघाड़े भी बनते हैं। इस दिन चांदी की थाली में खाने का चलन है। परेवा पर अन्नकूट की मिक्स सब्जी बनती है। साथ ही मीठे बाजरे संग पकौड़ी तैयार की जाती हैं। भाई दूज के दिन बहनें खसखस से तिलक किया जाता है।

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