लखनऊ। सावन मास की शुरूआत से पूर्व आने वाली हरिशयनी एकादशी, जिसे देवशयनी या देवपद्मनी एकादशी भी कहा जाता है, इस वर्ष 6 जुलाई रविवार को मनाई जाएगी। पंडित बिन्द्रेस दुबे कहते हैं कि हिंदू धर्म में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन से भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि की समस्त व्यवस्था भगवान शिव को सौंप देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) तक विश्राम करते हैं। इस दौरान संसार के पालन का दायित्व भगवान शिव निभाते हैं। इसे चातुर्मास की शुरूआत भी माना जाता है, जो तप, व्रत, नियम व संयम का काल होता है। हरिशयनी एकादशी के अवसर पर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन, प्रवचन व महामृत्युंजय जाप का आयोजन किया जाएगा। भगवान विष्णु को शंख, तुलसी, नारियल, फूल, फल व पीले वस्त्र अर्पित कर व्रत का विधान होता है। इस दिन भगवान शिव की उपासना, महामृत्युंजय मंत्र का जाप, कथा-श्रवण व ब्राह्मणों को भोजन कराने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह चार महीने धार्मिक साधना, दान-पुण्य, स्वाध्याय व आत्मनियंत्रण के लिए श्रेष्ठ माने जाते हैं। चार महीने तक मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि वर्जित माने जाते हैं। सात्विक आहार, संयमित जीवनशैली और नियमों का पालन इस काल में करना शुभ होता है। तुलसी दल अर्पित किए बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। व्रती इस दिन एकादशी व्रत रखते हैं और रात्रि जागरण कर भगवान की स्तुति करते हैं। इस एकादशी के साथ ही धार्मिक गतिविधियों की अधिकता शुरू हो जाती है और श्रद्धालु मन, वचन व कर्म से पुण्य संचय में लग जाते हैं।
श्रीहरि की आराधना से होता है पापों का नाश :
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार हरिशयनी एकादशी के दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की आराधना करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। चार महीने के बाद, जब भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को जाग्रत होते हैं, तब देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है, जो कि चातुर्मास का समापन होता है। ज्योतिषियों की मानें तो एकादशी का पर्व भक्तों को भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। इस पवित्र दिन पर व्रत और पूजा-अर्चना कर भक्तजन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। मांगलिक कार्य नहीं होंगे, परंतु पूजा, कथा, प्रवचन होंगे और व्रत त्योहार मनाए जाएंगे। इन चार माह में श्रीहरि की उपासना का अभीष्ठ फल प्राप्त होगा। चातुर्मास में महामृत्युंजय जाप, हवन, पूजन, कथा सत्संग होते रहेंगे। इन चातुर्मास में कथा प्रवचन कराने व श्रवण करने का कई गुना फल प्राप्त होता है। इन चार माह में शाकाहार का पालन करने वाले लोग विभिन्न शारीरिक कष्ट व्याधियों से बचे रहेंगे।