देवशयनी एकादशी 6 को, मांगलिक कार्यों पर लग जायेगा विराम

लखनऊ। आषाढ़ माह की एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसके बाद से ही चातुर्मास शुरू हो जाता है। भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। विष्णु के शयनकाल के समय सृष्टि का भार देवों के देव महादेव पर होता है। देवशयनी एकादशी के बाद से समस्त मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। देवशयनी एकादशी से चार माह तक भगवान विष्णु का शयनकाल चलता है। इस एकादशी के बाद 4 महीने तक भगवान विष्णु योग निद्रा में रहेंगे। इन चार महीनों में गृह प्रवेश, शादी, सगाई, जनेऊ आदि मांगलकि कार्य नहीं हो पाएंगे। इस साल देवशयनी एकादशी 6 जुलाई को है।

देवउठनी एकादशी से शुरू होंगे मांगलिक कार्य
भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से क्षीर सागर में सोने को चले जाते हैं। फिर चार मास बाद उन्हें जगाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक देवशयनी एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु भगवान क्षीर सागर में योग निद्रा के लिए चले जाते हैं। उनकी यह निद्रा चार माह बाद देवउठनी एकादशी के दिन खुलती है। इन चार महीनों के दौरान भगवान शिव को संसार के संचालन की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। सारे मांगलिक कार्य इसलिए बंद हो जाते हैं। लोगों का मानना है भगवान अभी निद्रा में हैं। ऐसे में किसी भी शुभ कार्य में भगवान का आशीर्वाद नहीं मिल पाएगा। जब देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं। उसी के साथ शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

बनेंगे कई शुभ योग
चातुर्मास 2025 में कुछ खास योग बन रहे हैं, जैसे कि सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग। मिथुन राशि में सूर्य, बुध, गुरु और चंद्रमा मिलकर एक चतुर्ग्रही योग बनाएंगे। शास्त्रों में लिखा है कि इन योगों में भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी, भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करने से बहुत फायदा होता है। हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को दुनिया का पालनहार माना जाता है। शुभ कामों में उनकी और देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद की जरूरत होती है। लेकिन चातुर्मास में ये सभी देवता योग निद्रा में होते हैं, इसलिए इस अवधि को आध्यात्मिक रूप से निष्क्रिय माना जाता है। यही वजह है कि इन महीनों में शुभ काम नहीं किए जाते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उनसे पूर्ण लाभ और पुण्य आपको नहीं मिलता है।

मिलेगा भगवान विष्णु का आशीर्वाद
विष्णु भगवान की आराधना के लिए एकादशी व्रत से कोई भी प्रभावशाली व्रत नहीं है। दिन जप-तप, पूजा-पाठ, उपवास करने से मनुष्य श्री हरि की कृपा प्राप्त कर लेता है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत ही प्रिय होती है। बिना तुलसी दल के भोग इनकी पूजा को अधूरा माना जाता है। ऐसे में देवशयनी एकादशी पर तुलसी की मंजरी, पीला चंदन, रोली, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतु फल एवं धूप-दीप, मिश्री आदि से भगवान वामन की भक्ति-भाव से पूजा करनी चाहिए। पदम् पुराण के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन कमललोचन भगवान विष्णु का कमल के फूलों से पूजन करने से तीनों लोकों के देवताओं का पूजन हो जाता है। रात के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य, भजन-कीर्तन और स्तुति द्वारा जागरण करना चाहिए।

विष्णु जी को लगाएं भोग, हर इच्छा होगी पूरी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु को केसर की मिठाई का भोग लगाएं। आप केसर की खीर बनाकर भी प्रभु को भोग लगा सकती हैं। इससे जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु को काले तिल के लड्डू का भोग जरूर लगाएं। इससे तनाव, कर्ज, रोग समेत अन्य परेशानियां दूर होंगी।
देवशयनी एकादशी के दिन प्रभु को पंजीरी का भोग लगा सकते हैं। इसे धनिया और सूखे मेवों से तैयार किया जाता है, जो सात्विक और स्वादिष्ट दोनों होती हैं। इससे व्यक्ति सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती हैं। देवशयनी एकादशी पर विष्णु जी की पूजा करें। इसके बाद उन्हें पंचामृत जिसे दूध, दही, शहद, चीनी और घी के मिश्रण से तैयार किया जाता है इसका भोग लगाएं। इससे श्रीहरि की कृपा प्राप्त होती हैं। इसके अलावा आर्थिक समृद्धि बनी रहती है।

देवशयनी एकादशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ माह की एकादशी पर भगवान विष्णु के शयन करते हैं, जिसके अनुसार चार महीनों तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं। यह चार महीने ‘चातुर्मास’ कहलाते हैं, इस दौरान शुभ काम जैसे विवाह, गृहप्रवेश आदि वर्जित माने जाते हैं। सृष्टि के संचालक और पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु हैं। ऐसे में देवशयनी एकादशी के बाद भगवान पूरे चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि को भगवान का भी शयनकाल कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयनकाल में जाने के बाद सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं,इसलिए चातुर्मास के चार महीनों में विशेषरूप से शिवजी की उपासना फलदाई है। देवशयनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत और पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के व्रत से विशेष रूप से शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
इस दिन सूर्योदय के पहले उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद, सूर्यदेव को जल अर्पित करते हुए भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें। घर के मंदिर को स्वच्छ करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को गंगाजल से स्नान कराएं। उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं और सुंदर फूलों से सजाएं। पूजा के लिए चंदन, तुलसी पत्र, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत, फल, और पीले फूलों का उपयोग करें।भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष दीप प्रज्वलित करें और धूप, दीप, चंदन, पुष्प आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को पंचामृत और फल का नैवेद्य अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।

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