उनकी कला के चाहने वाले सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरी दूनियां में थे
लखनऊ। विश्व विख्यात तबला वादक और पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन हो गया है। उनके निधन की खबर सुनते ही संगीत जगत में शोक की लहर फैल गयी। लखनऊ के जानेमाने भजन सम्राट अनूप जलोटा ने कहा कि उस्ताद जाकिर हुसैन का असमय जाना संगीत जगत के लिए बड़ी क्षति है। उनके निधन से आज पूरा संगीत जगत शोक में है। आगे अनूप जलोटा ने कहा कि उस्ताद जाकिर हुसैन ने संगीत के क्षेत्र में देश का नाम पूरी दुनियां में रौशन किया। उनके तबला वादन के चाहने वाले सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनियां में थे।
लखनऊ की जानमानी गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन की खबर सुनकर स्तब्ध हूं। उनका यूं जाना संगीत जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता। भगवान उनको अपने चरणों में स्थान दें।
लखनऊ के संगीतकार केवल कुमार ने कहा कि उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन की खबर सुनकर आहत हूं। वो जितने अच्छे तबलावादक थे, उतने ही अच्छे इंसान थे। उनकी कला के चाहने वाले सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरी दूनियां में थे। देश-विदेश में उन्होंने अनगिनत शो किये।
यहां आपको बताते चलें कि उस्ताद जाकिर हुसैन का सैन फ्रांसिस्को में इलाज चल रहा था। वहीं उन्होंने आखिरी सांस ली। उनका जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। उस्ताद जाकिर हुसैन को 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था।
मिल चुके थे तीन ग्रैमी अवॉर्ड
जाकिर हुसैन को तीन ग्रैमी अवॉर्ड भी मिल चुके थे। उनके पिता का नाम उस्ताद अल्लाह रक्खा कुरैशी और मां का नाम बीवी बेगम था। जाकिर के पिता अल्लाह रक्खा भी तबला वादक थे। जाकिर हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल से हुई थी। इसके अलावा उन्होंने ग्रेजुएशन मुंबई के ही सेंट जेवियर्स कॉलेज से किया था।
11 साल की उम्र में किया पहला कॉन्सर्ट
जाकिर हुसैन ने सिर्फ 11 साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया था। 1973 में उन्होंने अपना पहला एल्बम ‘लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड’ लॉन्च किया था। सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे उस्ताद जाकिर हुसैन जाकिर हुसैन के अंदर बचपन से ही धुन बजाने का हुनर था। वे कोई भी सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे। यहां तक कि किचन में बर्तनों को भी नहीं छोड़ते थे। तवा, हांडी और थाली, जो भी मिलता उस पर हाथ फेरने लगते थे। तबले को अपनी गोद में रखते थे जाकिर हुसैन शुरूआती दिनों में उस्ताद जाकिर हुसैन ट्रेन में यात्रा करते थे। पैसों की कमी की वजह से जनरल कोच में चढ़ जाते थे। सीट न मिलने पर फर्श पर अखबार बिछाकर सो जाते थे। इस दौरान तबले पर किसी का पैर न लगे, इसलिए उसे अपनी गोद में लेकर सो जाते थे।
तबले को अपनी गोद में रखते थे जाकिर हुसैन
शुरूआती दिनों में उस्ताद जाकिर हुसैन ट्रेन में यात्रा करते थे। पैसों की कमी की वजह से जनरल कोच में चढ़ जाते थे। सीट न मिलने पर फर्श पर अखबार बिछाकर सो जाते थे। इस दौरान तबले पर किसी का पैर न लगे, इसलिए उसे अपनी गोद में लेकर सो जाते थे।
12 साल की उम्र में 5 रुपए मिले
जब जाकिर हुसैन 12 साल के थे तब अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे। उस कॉन्सर्ट में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे संगीत की दुनिया के दिग्गज पहुंचे थे। जाकिर हुसैन अपने पिता के साथ स्टेज पर गए। परफॉर्मेंस खत्म होने के बाद जाकिर को 5 रुपए मिले थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात का जिक्र करते हुए कहा था- मैंने अपने जीवन में बहुत पैसे कमाए, लेकिन वो 5 रुपए सबसे ज्यादा कीमती थे। जाकिर हुसैन का सम्मान अमेरिका भी करता था जाकिर हुसैन का सम्मान दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी करता था। 2016 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें आॅल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था। जाकिर हुसैन पहले इंडियन म्यूजिशियन थे, जिन्हें यह इन्विटेशन मिला था।
कई फिल्मों में किया अभिनय
शशि कपूर के साथ हॉलीवुड मूवी में एक्टिंग की जाकिर हुसैन ने कुछ फिल्मों में एक्टिंग भी की है। उन्होंने 1983 की एक ब्रिटिश फिल्म हीट एंड डस्ट से डेब्यू किया था। इस फिल्म में शशि कपूर ने भी काम किया था। जाकिर हुसैन ने 1998 की एक फिल्म साज में भी काम किया था। इस फिल्म में उनके अपोजिट शबाना आजमी थीं। जाकिर हुसैन ने इस फिल्म में शबाना के प्रेमी का किरदार निभाया था। जाकिर हुसैन को फिल्म मुगल ए आजम (1960) में सलीम के छोटे भाई का रोल भी आॅफर हुआ था, लेकिन पिता को उस वक्त यह मंजूर नहीं था। वे चाहते थे कि उनका बेटा संगीत पर ही ध्यान दे।
लखनऊ के संगीतप्रेमियों, संगीतज्ञों ने जताया गहरा शोक
लखनऊ। जाकिर साहब अपने आप को तबला का विद्यार्थी ही मानते थे। वह पंजाब घराने के तबला नवाज थे। लेकिन बजाते फरुर्खाबाद घराना थे। पंजाब के बाद उनकी ट्रेनिंग फरुर्खाबाद घराने से हुई। वो तबले के बादशाह थे। तबले की किसी भी पंरपरा को वह बखूबी निभाते थे। भातखंडे संस्कृति विवि के तबला के शिक्षक व डुमरांव घराने के शास्त्रीय गायक प्रो कमलेश दुबे ने गहरा शोक जताया। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध तबला वादक और पद्म विभूषण से सम्मानित उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन पर लखनऊ के संगीतकारों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके निधन पर संगीतप्रेमियों, संगीत शिक्षकों ने गहरा दुख जताया। उन्होंने कहा कि यह संगीत और कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उस्ताद हुसैन ने अपनी अद्वितीय प्रतिभा और साधना से भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
लखनऊ में पंजाब घराने के तबला नवाज शेख इब्राहिम ने कहा कि उनकी तबला वादन शैली, गहन संगीत समझ और साधना ने उन्हें विश्व स्तर पर एक अमिट पहचान दिलाई। ऐसी महान विभूति के जाने से संगीत और कला जगत में एक बड़ा रिक्त स्थान उत्पन्न हुआ है, जिसे भर पाना असंभव है। कहा कि उस्ताद जाकिर हुसैन की कला और विरासत सदैव प्रेरणास्रोत बनी रहेगी। पखावज वादक राज खुशीराम ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया उन्होंने कहा तबले पर थिरकती उंगलियों का वैसा जादू शायद ही दिखे। उस्ताद जाकिर हुसैन तबले को हमेशा आम लोगों से जोड़ने की कोशिश करते थे। यही वजह थी कि शास्त्रीय विधा में प्रस्तुतियों के दौरान बीच-बीच में वे अपने तबले से कभी डमरू, कभी शंख तो कभी बारिश की बूंदों जैसी अलग-अलग तरह की ध्वनियां निकालकर सुनाते थे। वे कहते थे कि शिवजी के डमरू से कैलाश पर्वत से जो शब्द निकले थे, गणेश जी ने वही शब्द लेकर उन्हें ताल की जुबान में बांधा। हम सब तालवादक, तालयोगी या तालसेवक उन्हीं शब्दों को अपने वाद्य पर बजाते हैं। गणेश जी हमारे कुलदेव हैं। संगीतप्रेमियों ने जाकिर साहब की लखनऊ से जुड़ीं यादें साझा कीं।