दक्षिण एशियाई देशों में प्राणघातक लू आम बात होगी : वैज्ञानिक

नई दिल्ली। अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित कर दिया जाता है तो भी भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों में प्राणघातक लू का प्रकोप आम हो जाएगा। अमेरिका स्थित ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी सहित विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में दावा किया कि है भीषण गर्मी की वजह से भारत के खाद्यान्न उत्पादन करने वाले बड़े क्षेत्र में काम करने की स्थिति असुरक्षित हो सकती है जैसे उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।

इसके अलावा तटीय इलाकों एव कोलकाता, मुंबई एवं हैदराबाद जैसे शहरी केंद्रों में भी मुश्किल बढ़ सकती है। जर्नल जियोफिजिक्स रिसर्च लेटर में प्रकाशित अनुसंधान पत्र के मुताबिक दो डिग्री तापमान बढ़ने से इसका सामना करने वाली आबादी में मौजूदा समय के मुकाबले तीन गुना तक वृद्धि हो जाएगी। अनुसंधान पत्र के सह लेखक एवं ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी में कार्यरत मोइतसिम अशफाक ने कहा, दक्षिण एशिया का भविष्य खराब दिख रहा है एवं सबसे खराब स्थिति से तापमान वृद्धि पर नियंत्रण करके ही बचा जा सकता है। दक्षिण एशिया को आज ही कदम उठाने की जरूरत है, भविष्य में नहीं।

अब कोई विकल्प नहीं बचा है। अशफाक ने कहा, यहां तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का भी दक्षिण एशिया पर गंभीर असर होगा। इसलिए मौजूदा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को तेजी से कम करने की जरूरत है। इस नतीजे पर पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों ने जलवायु अनुकरण और जनसंख्या वृद्धि पूर्वानुमान का इस्तेमाल कर यह पता लगाया कि वैश्विक तापमान में 1.5 से दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर दक्षिण एशिया में कितने लोगों पर लू के थपेड़ों का असर होगा।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लोगों को वेट बल्ब टेम्प्रेचर का सामना करना पड़ेगा। यह ताप सूचकांक की तरह है जिसमें आर्द्रता एवं तापमान का संदर्भ लिया जाता है। अध्ययन में रेखांकित किया गया कि 32 डिग्री वेट बल्ब टेम्प्रेचर को मजदूरों के लिए असुरक्षित माना जाता है और इसके 35 डिग्री होने पर इन्सान का शरीर खुद को ठंडा नहीं रख पाता। वेट बल्ब टेम्प्रेचर आर्द्र मलमल की थैली में लिपटे वल्ब वाले थर्मामीटर द्वारा अंकित तापमान को कहते हैं जो वाष्पीकरण में होने वाली ऊष्मा-क्षति के कारण, सामान्य थर्मामीटर द्वारा मापे जाने वाले ताप की अपेक्षा कम होता है।

इस विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा कि तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्घि होने की स्थिति में काम के लिए असुरक्षित तापमान से प्रभावित होने वालों की संख्या दो गुनी हो जाएगी जबकि प्राणघातक तापमान से मौजूदा समय के मुकाबले 2.7 गुना अधिक लोग प्रभावित होंगे। चेन्नई स्थित एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में वायुमंडलीय वैज्ञानिक टीवी लक्ष्मी कुमार ने कहा, तामपान और लू संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए नीति बनाने की बहुत जरूरत है। हालांकि, वह इस अध्ययन का हिस्सा नहीं थे।

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