नई दिल्ली। कोविड-19 महामारी के चलते 48 वर्षीय वीराम्मा के परिवार की आजीविका चली गई। उन्हें अब इस बात का डर है कि दिल्ली में रेल पटरी के किनारे से 48 हजार झुग्गियों को हटाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के मद्देनजर वह अपने सिर से छत भी खो देंगी।
लाजपत नगर में जल विहार के नजदीक पटरी के पास स्थित अपने घर के बाहर बैठी वीरम्मा ने कहा, मेरे पति का जन्म यहीं हुआ था। मेरे बेटे का जन्म भी यहीं हुआ था। मेरे सास-ससुर ने यहीं पर अंतिम सांस ली। हमारे पास सबकुछ यही है। वीरम्मा घरेलू सहायिका के तौर पर कार्य करती हैं।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी फैलने के बाद नियोक्ताओं ने अभी तक उन्हें काम पर दोबारा नहीं बुलाया है। वीरम्मा ने अपनी दो साल की पोती की ओर दुखी मन से देखते हुए कहा, मेरे पति चल-फिर नहीं सकते। मेरा बेटा दिहाड़ी मजदूर है, उसके पास भी आजकल ज्यादा काम नहीं है।
हमारे पास अपने परिवार के एक सप्ताह के भोजन के लिए पर्याप्त राशन नहीं है। उन्होंने कहा, मेरी पोती के दूध के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं। यदि हम भीख भी मांगेंगे, तो हमें कुछ नहीं मिलेगा। हमारे लिए समय इतना मुश्किल भरा कभी नहीं रहा।
उच्चतम न्यायालय ने गत 31 अगस्त को दिल्ली में पटरियों के किनारे से 48,000 झुग्गियों को हटाने का आदेश दिया था। एक अनुमान के अनुसार, नारायणा विहार, आजादपुर शकूर बस्ती, मायापुरी, श्रीनिवासपुरी, आनंद पर्बत और ओखला में झुग्गियों में लगभग 2,40,000 लोग रहते हैं। उत्तर रेलवे ने शीर्ष न्यायालय को इस बाबत एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कहा गया था कि रेल पटरियों के किनारे झुग्गियां पटरियों को साफ सुथरा रखने में बाधक हैं।
पंचवर्ण (55) ने कहा कि उनका परिवार चेन्नई से दिल्ली आया था। उन्होंने कहा, हम जानते हैं कि यह जमीन सरकार की है, लेकिन हम कहां जाएंगे? हमारी जिम्मेदारी कौन लेगा? एलुमलाई (35) ने चुनावों से पहले सरकार द्वारा किए गए वादे– जहां झुग्गी, वहीं मकान — को याद दिलाया। एलुमलाई के पिता 1978 में चेन्नई से दिल्ली आए थे। एलुमलाई ने कहा, हम यह नहीं कहते कि हम शीर्ष न्यायालय के के आदेश को नहीं मानेंगे। यह जमीन रेलवे की है और वे इसे एक दिन में (खाली करा) लेंगे, लेकिन हम कहां जाएंगे? कोई भी हमारी परवाह नहीं करेगा।
दिलचस्प बात है कि हर झुग्गी में बिजली का कनेक्शन है। उसमें रहने वाले लोगों के पास आधार कार्ड और राशन कार्ड हैं। आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने पिछले वर्ष झुग्गीवासियों के लिए सामुदायिक शौचालय बनाए थे, ताकि कोई भी खुले में या पटरी के किनारे शौच नहीं करे। एक चालक के तौर पर कार्यरत 45 वर्षीय शंकर सरांगम को कोविड-19 के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान तीन महीने से वेतन नहीं मिला।
उन्होंने कहा, वेतन आधा हो गया है। मेरा परिवार है जिसका भरण पोषण करना है। हम भगवान के शुक्रगुजार थे कि हमारे सिर पर एक छत थी। उन्होंने कहा, अब झुग्गी भी चली जाएगी। रेलवे को कम से कम इस कदम के समय पर विचार करना चाहिए था। महामारी का प्रभाव अगले तीन वर्षों तक रहेगा।