चुनरी काहे न रंगायो गोरिया पांचों रंग में…

कबीर अध्यात्म के अद्भुत कवि हैं : शिवओम अम्बर
हिन्दी संस्थान में संत कबीर और नागार्जुन स्मृति समारोह
लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा संत कबीर एवं नागार्जुन स्मृति समारोह के शुभ अवसर पर दिन शुक्रवार 20 जून, 2025 को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के निराला सभागार लखनऊ में किया गया। दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त वाणी वंदना श्रीमती कामिनी त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत की गयी। सम्माननीय अतिथि- डॉ. शिवओम अम्बर व डॉ. श्रुति का स्वागत स्मृति चिह्न भेंट कर डॉ. अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया। डॉ. शिवओम अम्बर ने कहा कबीर अध्यात्म के अद्भुत कवि हैं। कबीर प्रभु से शिशुभाव से जुड़ते हैं। कबीर के साहित्य में साधना के तत्व विद्यमान है। संत मनुष्य की परम स्थिति है। कबीर को समझने के लिए साधना के मार्ग पर चलना होगा। कबीर का कहना था कि जीवन को सहजता से जीने की आवश्यकता है। कबीर ने शरीर में प्रभु की विद्यमानता को स्वीकार किया है। कबीर का कहना था कि मैं जो कुछ करता हूँ वो सब कुछ प्रभु साधना है।
डॉ. श्रुति ने कहा नागार्जुन की रचनाएं समाज के साथ-साथ चलती हैं। कालजयी रचनाकार समय व स्थान से बंधा नहीं होता है। वे मैथिली के लोक कवि के रूप में जाने जाते हैं। उनका स्ांस्कृत भाषा पर विशेष अधिकार था। नागार्जुन की कीर्ति का आधार हिन्दी भाषा बनी। नागार्जुन संवेदनशील प्रकृति के थे। नागार्जुन की घुमक्कड़ी प्रवृत्ति ने उन्हें काफी अनुभव दिया। नागार्जुन अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज से संवाद करते हैं। वे मानववाद के पक्षधर थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में शोषित, वंचित वर्गों की आवाज उठायी है। वे अपनी रचनाओं में अदम्य साहस से समाज की बात को उठाते हैं। नागार्जुन की कविता मंत्र काफी प्रसिद्ध है। नागार्जुन अपनी रचनाओं में तीखे शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। नागार्जुन के उपन्यासों में नव समाजवाद की झलक दिखायी देती है। उनके उपन्यासों में सामाजिक समस्याओं का वर्णन मिलता है।
इस स्मृति समारोह के अवसर पर सुश्री तनु मिश्रा ने नागार्जुन के उपन्यास पारो के कुछ अंशों का तथा सुश्री सुकीर्ति तिवारी ने नागार्जुन की कविताओं का कालिदास, पीपल के पीले पत्ते, उनको प्रणाम, मेरी भी आभा है इसमें का पाठ किया। इस अवसर पर कबीर के पदों रहना नहिं देस बिराना है, झीनी-झीनी बीनी चदरिया, चुनरी काहे न रंगायो गोरिया पाँचों रंग में, बीत गये दिन भजन बिनारे, मन लागो मेरो यार फकीरी में, भजो रे भैया राम गोविन्द हरि की संगीत मय प्रस्तुति- सरोज खुल्बे, नीलिमा सिंह, सुबोध दुबे द्वारा की गयी। तबले पर दिनेश पाण्डे तथा साइड रिदम पर मोहन राव देशमुख द्वारा सहयोग किया गया। डॉ. अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उप्र हिन्दी संस्थान द्वारा कार्यक्रम का संचालन एवं संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया गया।

RELATED ARTICLES

रथ पर विराजमान होकर आज नगर भ्रमण पर निकलेंगे श्री जगन्नाथ

लखनऊ। भगवान जगन्नाथ शुक्रवार 27 जून को बलभद्र और माता सुभद्रा के साथ शहर भ्रमण के लिए निकलेंगे। वैसे तो भक्त अमूमन दर्शन के...

शास्त्रीय गायन, वादन, कथक और भरतनाट्यम ने मंच पर समां बांधा

भातखंडे : प्रमाण पत्र वितरण समारोह में प्रतिभागियों नें दी मनमोहक प्रस्तुति लखनऊ। भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय, लखनऊ मे चल रहे ग्रीष्मकालीन संगीत एवं कला अभिरुचि...

जगन्नाथ रथ यात्रा से पूर्व हुआ सामूहिक हवन यज्ञ

आज नगर भ्रमण पर निकलेंगे श्री जगन्नाथ, माता सुभद्रा, भाई बलदेव लखनऊ। डालीगंज श्री राधा माधव सेवा संस्थान के बैनर तले स्थित 64वा श्री माधव...

Latest Articles