हालांकि चीन समझौता, सिद्धान्त, नीति और नैतिकता का कभी कोई सम्मान नहीं करता है इसलिए चीन के साथ सैन्य एवं कूटनीतिक स्तर पर नौ दौर की वार्ता के बाद जो राहत भरी खबर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दी उससे स्पष्ट है कि चीन भारत से बीते पांच-छह सालों में कई बार जोरआजमाइश कर चुका है और हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है। ऐसे में अगर चीन एलएसी को मानते हुए स्टैंडऑफ खत्म करने को तैयार हुआ है तो निश्चय ही उसे भारत की कूटनीतिक और सैनिक ताकत का एहसास हो गया है।
चीन अब उस स्थिति में नहीं है कि पहले की तरह भारत की सीमा में घुसता रहे, भारत की जमीन को कब्जाता रहे और भारत उसकी जी हुजूरी करे। भारत आज एक सशक्त देश के रूप में उभर रहा है और बीते कई वर्षों से जिम्मेदार महाशक्ति के रूप में जहां अपनी ताकत बढ़ा रहा है वहीं इस शक्ति का उपयोग किसी दूसरे देश को डराने के बजाय अपनी सीमाओं की रक्षा करने के साथ ही दुनिया की मदद करने में भी करता है।
यही कारण है कि जब भारत की ताकत बढ़ती है तो दुनिया सुरक्षा का अहसास करती है और जब चीन बलशाली होता है तो दुनिया खतरा महसूस करती है। चीन ने बीते एक दशक के दौरान जिस तरह से अपनी आर्थिक और सैनिक ताकत का प्रयोग छोटे-छोटे देशों को दबाने, पड़ोसी देशों की सीमाओं में घुसपैठ करने व विस्तारवाद के लिए किया, उससे दुनिया चौकन्नी हो गयी है और अब न तो चीन में कोई निवेश करना चाहता है, न ही चीन को कोई ताकतवर होते देखना चाहता है।
चीन की महत्वाकांक्षा कर्ज, डॉलर और सैनिक ताकत के सहारे साम्राज्यवादी विस्तार की है और यह आधुनिक दुनिया में किसी को मंजूर नहीं है। यही कारण है कि जब चीन ने बीते साल पूरी दुनिया में कोरोना फैलाकर पड़ोसी देशों की जमीनों पर कब्जा करने लगा तो अमरीका, जापान, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के समर्थन में खड़े हुए। चीन की हरकत का जवाब सभी देशों ने आर्थिक संबंधों को सीमित करने की प्रक्रिया शुरू करके दी।
लद्दाख में भारत को धोखा देकर मध्य जून में जिस तरह से उसने एलएसी को एकतरफा बदलने की कोशिश की उसकी भारी कीमत चीन को चुकानी पड़ी है। बीते कई सालों से जारी चीन के विस्तारवादी रवैया का पूरी तरह पर्दाफाश हो गया है और पूरी दुनिया उसके खिलाफ है। कब्जा करने के चक्कर में जो झड़प हुई उसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गये लेकिन हमारे जांबाजों ने चीन को मुंहतोड़ जवाब देते हुए उसके 40-50 घुसपैठिए सैनिकों को मार डाला।
गलवान, पैंगोंन्ग से लेकर अरुणाचल और सिक्किम तक चीन की हरकत का भारत ने कठोर जवाब दिया है और यही कारण है कि गलवान, पैंगोंग, सिक्किम से लेकर डोकलाम तक उसे भारत से मात खानी पड़ी है। चीन जबरदस्त मार खाकर और अपनी विश्वसनीयता को खोकर पैंगोंग से पीछे लौटने के लिए तैयार हुआ है।
यह दरअसल भारत की सैनिक, कूटनीतिक और रणनीतिक जीत है और हमारे लिए यह बड़ी राहत और प्रसन्नता की बात है कि देश ने गलवान के शहीदों की कुर्बानी को बेकार नहीं जाने दिया है। लेकिन डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया की सावधानी से निगरानी करनी चाहिए और जब चीन सभी समझौते का पालन करे तभी भारत को सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ठिकानों से हटना चाहिए, क्योंकि इस समय भारत पैंगोंग के दक्षिण में महत्वपूर्ण चोटियों पर काबिज है जो सामरिक दृष्टि से चीन के कब्जे वाले इलाकों से ज्यादा महत्वपूर्ण है।