लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फेयर का कलात्मक परिदृश्य
लखनऊ। फ्लोरसेंस आर्ट गैलरी द्वारा फीनिक्स प्लासियो में इन दिनों चल रहे लखनऊ स्पेक्ट्रम – 2015 आर्ट फेयर ने बाल दिवस के अवसर पर राजधानी की कला-जगत को एक विशिष्ट और स्मरणीय दृश्य प्रदान किया। बड़ी संख्या में बच्चों का आगमन इस आयोजन को केवल एक प्रदर्शनी न बनाकर, एक जीवंत कला-संवाद में परिवर्तित कर गया—जहाँ दर्शक सिर्फ दर्शक नहीं थे, बल्कि कला की ऊर्जा के सक्रिय सहभागी बने।
बाल-दर्शकों की मौजूदगी ने पहली बार की दृष्टि को पुनर्जीवित किया। उनकी आँखों में अनगढ़ जिज्ञासा, उनकी प्रतिक्रियाओं में निष्कपटता, और उनके प्रश्नों में कला को छूने, समझने और आत्मसात करने की बालसुलभ बेचैनी दिखाई दी। यही वह दृष्टि है जिसे कला-समीक्षा अक्सर खो देती है, और बच्चों के माध्यम से पुन: खोजती है। बच्चों के सहज स्वीकृति-अस्वीकृति ने कई कलाकृतियों को नए अर्थों में खोल दिया। बच्चों ने आकारों में कहानी, रंगों में भाव, और रेखाओं में गति महसूस की—और यह वही संवेदना है जिसे आधुनिक कला अभ्यास अक्सर पुन: प्राप्त करने की कोशिश करता है। इस दृष्टि से देखें तो बाल-दर्शक केवल दर्शक नहीं थे। वे कला के अर्थ-निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय सह-रचनाकार बनकर उभरे।
निदेशक नेहा सिंह और आर्ट फेयर के क्यूरेटर भूपेंद्र अस्थाना व राजेश कुमार ने इस बाल-संवाद को कला जगत के लिए एक मूल्यवान संकेतक बताया। उनके अनुसार, बच्चों की सहज ग्रहणशीलता हमें याद दिलाती है कि कला का मूल स्वरूप जटिल विचारों से नहीं, बल्कि अनुभूति और विस्मय से आरंभ होता है। उन्होंने बताया 1 से 30 नवम्बर 2026 तक चलने वाले इस लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फेयर में इसी संवाद-परंपरा को और विस्तृत रूप देने की योजना है, जहाँ कला केवल प्रदर्शित नहीं होगी—बल्कि अनुभव की जाएगी, समझी जाएगी और पुन: व्याख्यायित की जाएगी।
लखनऊ स्पेक्ट्रम आर्ट फेयर का यह संस्करण सिर्फ कलाकृतियों का संग्रह नहीं, बल्कि सांस्कृतिक स्मृतियों, आधुनिक दृष्टियों और लोक-स्वाद के सौंदर्यबोध से बुना एक जीवंत कलात्मक मानचित्र है। परिवारों और कला-प्रेमियों के लिए संदेश है कि वे अपने बच्चों के साथ आइए— ताकि वे रंगों के स्पर्श में संवाद ढूँढें, रेखाओं की गति में संसार पढ़ें, और समझें कि कला सिर्फ दृश्य अनुभव नहीं, बल्कि संवेदना से विचार तक की एक सुंदर यात्रा है।





