चंद्रग्रहण में बंद रहे मंदिर के कपाट, होता रहा जाप

लखनऊ। चंद्रग्रहण के दौरान लगे सूतक में लखनऊ के सभी मंदिर बंद रहे। सुबह से ही शहर के मनकामेश्वर मठ मंदिर, हनुमान सेतु, चौक में काली जी, राजेंद्र नगर श्रीमहाकाल व पक्कापुल स्थित लेटे हुए हनुमान मंदिर समेत सभी के कपाट समितियों ने बंद कर दिए। वहीं घरों में लोगों ने ग्रहण काल में जाप किया। ग्रहण समाप्त होने के बाद मंदिरों में भगवान का गंगा जल से स्नान कराकर वस्त्र बदला गया। आरती करने के बाद भक्तों का दर्शन का क्रम शुरू हुआ। ग्रहण में भक्त मंदिरों के सामने बैठकर मौन जाप करते रहे। ऐसी मान्यता है कि ऐसे समय में बिना बोले जाप व भगवान का सुमिरन करना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है। डालीगंज स्थित मनकामेश्वर मंदिर के कपाट चंद्रग्रहण के नौ घंटे पहले बंद हो गए। महंत देव्या गिरि ने आरती व पूजन किया। मंदिर परिसर में भक्तों ने सुंदरकांड पाठ किया।

गोमती में लगी आस्था की डुबकी
चंद्र ग्रहण के कारण लखनऊ के गोमती तट पर श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। इस दौरान कुछ लोग नदी में खड़े होकर विशेष रूप से मंत्रों का जाप किया, वहीं, दूसरी तरफ संकट मोचन हनुमान जी के मंदिर के कपाट भी ग्रहण के नौ घंटे पहले ही बंद रहा। भक्तों ने मंदिर के बाहर से ही भगवान की पूजा की। श्रद्धालुओं का कहना है कि ग्रहण के दौरान पूजा पाठ करने से ग्रहण के दुष्प्रभाव खत्म होता है। ग्रहण के प्रभाव से अपने-अपने परिवार को बचाने के लिए उन्होंने पूजा-अर्चना की।

3 प्रकार के होते हैं चंद्र ग्रहण

पूर्ण चंद्र ग्रहण – जब सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आ जाती है और ये तीनों ग्रह एक सीधी लाइन में होते हैं, तब चंद्र पर पृथ्वी की छाया पड़ती है और चंद्र लाल दिखने लगता है। इस स्थिति को पूर्ण चंद्र ग्रहण कहते हैं।

आंशिक चंद्र ग्रहण – जब सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आती है, लेकिन ये तीनों ग्रहण एक सीधी लाइन में नहीं होते हैं, तब चंद्र के कुछ हिस्से पर पृथ्वी की छाया पड़ती है, जिससे आंशिक चंद्र ग्रहण होता है।

मांद्य यानी उपच्छाया चंद्र ग्रहण – इस चंद्र ग्रहण का धार्मिक महत्व नहीं होता है। इस ग्रहण में सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी आती है, लेकिन तीनों ग्रह सीधी लाइन में नहीं होते और चंद्र पर पृथ्वी की सिर्फ हल्की सी छाया पड़ती है, जो कि चंद्र पर धूल की तरह दिखती है।

चंद्र ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यता

पं. बिन्द्रेस दुबे कहते हैं, जब राहु सूर्य या चंद्र को ग्रसता है यानी निगलता है, तब ग्रहण होता है। इस संबंध में राहु और समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है। पुराने समय में देवताओं और दानवों ने एक साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से अंतिम रत्न अमृत निकला। देवता और दानव दोनों ही अमृत पीकर अमर होना चाहते थे। उस समय भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पान कराने के लिए मोहिनी अवतार लिया था। मोहिनी देवताओं को अमृत पिला रही थी। उसी समय राहु देवताओं के बीच भेष बदलकर बैठ गया और उसने भी अमृत पी लिया। सूर्य-चंद्र ने राहु को पहचान लिया था और विष्णु जी को राहु की सच्चाई बता दी। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। राहु अमृत पी चुका था, इस वजह से वह मरा नहीं। राहु के दो हिस्से हो गए। एक हिस्सा राहु और दूसरा हिस्सा केतु के नाम से जाना जाता है। राहु की शिकायत सूर्य-चंद्र ने की थी, इस वजह से राहु इन दोनों को दुश्मन मानता है और समय-समय पर इन दोनों ग्रहों को ग्रसता है, जिसे ग्रहण कहते हैं।

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