लखनऊ। चैत्र नवरात्र के छठे दिन शुक्रवार को मां कात्यायनी की आराधना देवी मन्दिरों से लेकर घरों तक हुई। भोर से ही राजधानी के सभी देवी मंदिर मां कात्यायनी के जयकारों से गूंजते रहे। शास्त्रीनगर के दुर्गा मन्दिर, चौपटिया के सन्दोहन देवी मन्दिर, ठाकुरगंज के मां पूर्वी देवी मन्दिर में पुजारी द्वारा मां भगवती की पूजा अर्चना और सुबह शाम की अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली…, आरती की गई। चौक के बड़ी काली जी मन्दिर, छोटी काली जी मन्दिर, कैसरबाग के कालीबाड़ी मन्दिर, बीकेटी के चन्द्रिका देवी मन्दिर और इक्यावन शक्तिपीठ मे चैत्र नवरात्र की पूजा हुई। चौपटिया स्थित संदोहन देवी मंदिर में माता रानी का अर्धनारीश्वर रूप में शृंगार हुआ। माता का एक भाग नारी और एक भाग नर रूप का है। माता ने नन्दी पर सवार होकर भक्तों को दर्शन दिए। मंदिर परिसर को रंग बिरंगे फूलों से सजाया गया। ठाकुरगंज स्थित मां पूर्वी देवी मंदिर में माता का कात्यायनी स्वरूप में शृंगार हुआ। माता को गुलाबी रंग के वस्त्र पहनाए गए। भवन को गेंदे के फूलों से सजाया गया। माता को नारियल, इलायची पेड़ा व पांच प्रकार के फल का भोग लगाया गया। भक्तों ने दुर्गा सप्तशती के मंत्रों पर हवन किया। महिला मंडली ने भर दे मां झोली, धीरे धीरे खेलो भवानी, जैसे मां को समर्पित गीत गाकर सभी को भाव विभोर कर दिया। वहीं चौपटिया स्थित काली बाड़ी मंदिर में माता को मछली और पापड़ का भोग लगाया गया। साथ ही पक्का पुल स्थित मरी माता मंदिर, शीतला माता मंदिर, संतोषी माता आदि मंदिरों में माता को भोग लगाकर आरती उतारी गई।
मंदिरों में जुटी श्रद्धालुओं की भीड़:
जैसे जैसे अष्टमी नजदीक आती जा रही है वैसे वैसे मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। आज नवरात्रों के छठे दिन भी मंदिरों में लोगों का ताता लगा रहा जिसमें महिलाओं व बच्चों की संख्या अधिक रही। लोगों ने सुबह सवेरे मंदिरों में पहुंचकर भारी संख्या में मा भवानी की पूजा व अर्चना की। हर रोज की भाति आज भी शहर के विभिन्न मंदिरों में भक्तों की लम्बी.लम्बी लाइनें लग गई और कई घटों तक लोग मा भवानी के दर्शन करने के लिए खड़े रहे। शहर के अन्य मंदिरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्थित मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रही, जहा बड़ी संख्या में लोगों ने मां भवानी की पूजा.अर्चना की व मन्नतें मागी। लोगों नवरात्रों के उपलक्ष्य में व्रत भी रख रहे है। इस बीच श्रद्धालुओं द्वारा अष्टमी व नवमी के पर्व की भी जोरदार तैयारिया शुरू की जा रही है।
51 शक्ति पीठ में मां का पीतांबर शृंगार हुआ:
नंदन बक्शी का तालाब स्थित 51 शक्तिपीठ धाम में वासंतिक नवरात्र के छठें दिन माँ कात्यायनी की स्तुति की गई।
मन्दिर में स्थापित स्फटिक शिवलिंग का पीतांबर श्रृंगार किया गया। सती के पति का सुंदर व दर्शनीय श्रृंगार रायबरेली आचार्य विवेक मिश्रा द्वारा किया गया। इसके अलावा मन्दिर मे अन्य पूजन मे आचार्य धनंजय पाण्डेय, आचार्य प्रवीण मिश्र, आचार्य अनुराग पाण्डेय, आचार्य सुलभ शुक्ला , आचार्य मोनू पाण्डेय, आचार्य दीपक तिवारी, आचार्य अनुपम तिवारी द्वारा सम्पन्न हुआ। मंदिर की की अध्यक्ष तृप्ति तिवारी ने बताया कि नवरात्र के प्रतिदिन मां का अलग-अलग स्वरूपों में रंगों में पूजा अर्चना की जाएगी शाम को भजन कीर्तन के आयोजन किए गए। भजन की शुरूआत पुष्पा, आकांक्षा, गीता, वंदना, कुमकुम ने मैया पहाड़ों वाली के भजन सुनाये।
मनोकामना पूरी होने पर घंटा बांधने की है परम्परा:
राजधानी के अर्जुनगंज इलाके में पुल पर स्थापित मरी माता मंदिर में भक्तों की अटूट श्रद्धा है। इस मंदिर में न तो कोई मूर्ति है और न ही किसी देवी की प्रतिमा। मनोकामना पूर्ण होने पर मंदिर में घंटा बांधने की परंपरा है। मंदिर में लाखों घंटे इस मंदिर से जुड़ी लोगों की आस्था को बयां करते हैं। इतनी अधिक संख्या में मंदिर में घंटे बंधे होने से यह घंटे वाला मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। मंदिर की पुजारी सोनम बताती हैं यह मंदिर करीब 200 वर्ष पुराना है। यहां आकर जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ माता की पूजा करते हैं मां उनकी फरियाद जरूर पूरी करती हैं। पुजारी सोनम के पिता इस मंदिर की देख.रेख करते थे। उनके गुजरने के बाद बीते सात वर्ष से वह मंदिर की पूरी जिम्मेदारी निभा रही हैं।
मां कात्यायनी ने किया महिषासुर का वध:
पंडित बिन्द्रेस दुबे ने बताया कि कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती शक्ति के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं। कात्यायनी अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेमावती व ईश्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, में भी प्रचलित हैं। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं, जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया।
आज विधि-विधान से होगी मां कालरात्रि की आराधना
लखनऊ। माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी-काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृित्यू, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालात्री के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं। यह ध्यान रखना जरूरी है कि नाम, काली और कालरात्रि का उपयोग एक दूसरे के परिपूरक है, हालांकि इन दो देवीओं को कुछ लोगों द्वारा अलग-अलग सत्ताओं के रूप में माना गया है। काली का उल्लेख हिंदू धर्म में लगभग 600 ईसा के आसपास एक अलग देवी के रूप में किया गया है। कालानुक्रमिक रूप से, कालरात्रि महाभारत में वर्णित, 300 ईसा पूर्व के बीच वर्णित है जो कि वर्त्तमान काली का ही वर्णन है। माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिसाच और नकारात्मक ऊजार्ओं का नाश होता है, जो उनके आगमन से पलायन करते हैं।
मां कालरात्रि की पूजा विधि:
नवरात्र में मां कालरात्रि की विशेष रूप से आराधना की जाती है। देवी को प्रसन्न करने के लिए जातक पूजा करते समय लाल, नीले या सफेद रंग के कपड़े पहन सकते हैं। मां कालरात्रि की प्रात: काल सुबह चार से 6 बजे तक करनी चाहिए। जीवन की कठिनाइयों को कम करने के लिए सात या सौ नींबू की माला देवी को अर्पित कर सकते हैं। सप्तमी की रात में तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योति जलाएं। इसके अलावा अर्गला स्तोत्रम, सिद्धकुंजिका स्तोत्र, काली चालीसा और काली पुराण का पाठ करना चाहिए। सप्तमी की पूरी रात दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
मां की उपासना से हर भय से मिलती है मुक्ति
नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। मां की उपासना से सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का विनाश होता है। माता के भक्तों को किसी प्रकार से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। माता अपने भक्तों को सदैव शुभ फल का आशीर्वाद देने वाली हैं। माता का एक नाम शुभंकारी भी है। मां कालरात्रि को अज्ञानता को नष्ट करने और ब्रह्मांड से अंधकार को दूर करने के लिए जाना जाता है। मां ने दैत्यों का संहार करने के लिए अपनी त्वचा के रंग का त्याग किया। मां कालरात्रि की उपासना के लिए सबसे उपयुक्त समय मध्य रात्रि में होता है। मां कालरात्रि का प्रिय रंग नारंगी है, जो तेज, ज्ञान और शांति का प्रतीक है। माता की साधना के लिए मन, वचन, काया की पवित्रता का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। मां की उपासना एकाग्रचित होकर करनी चाहिए। माता के उपासकों को अग्नि, जल, जीव, जंतु, शत्रु का भय कभी नहीं सताता। मां की कृपा से साधक भयमुक्त हो जाता है। माता की आराधना से तेज व मनोबल बढ़ता है। मां को रोली कुमकुम लगाकर, मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करें। माता की साधना के लिए मन, वचन, काया की पवित्रता का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम का पाठ करें। मां कालरात्रि को गुड़ व हलवे का भोग लगाएं।