नई दिल्ली। सीबीआई ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील बोफोर्स तोप सौदा दलाली मामले में आगे जांच की अनुमति के लिए दायर अर्जी बृहस्पतिवार को दिल्ली की अदालत से वापस ले ली। मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट नवीन कुमार कश्यप को सीबीआई ने बताया कि जांच एजेंसी एक फरवरी 2018 को दायर अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है।
Earlier,Chief Metropolitan Magistrate Naveen Kashyap raised question 'why does CBI need court's permission to proceed with further investigation in matter" and asked CBI to place on record case laws to show that it needs permission from the court to probe further in Bofors case https://t.co/5b9xQYeCqp
— ANI (@ANI) May 16, 2019
सीबीआई ने मामले में आगे की जांच कर अनुमति के लिए निचली अदालत तके अर्जी दायर की थी। सीबीआई ने कहा था कि मामले में उसे नई सामग्री और सबूत मिले हैं। जांच एजेंसी ने बृहस्पतिवार को अदालत को बताया कि वह आगे की कार्वाई के बारे में निर्णय लेगी परंतु इस समय वह अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है।
सीबीआई के बदले हुए रुख पर गौर करते हुए न्यायाधीश ने कहा, इसका कारण तो सीबीआई ही बेहतर जानती है, मामले में वह अपनी अर्जी वापस लेना चाहती है, ऐसा करने का उन्हें अधिकार है क्योंकि वे आवेदक हैं। अदालत ने चार दिसंबर 2018 को पूछा था कि आखिर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मामले में आगे की जांच के लिए उसकी अनुमति की जरूरत क्यों है।
सीबीआई ने मामले में सभी आरोपियों को आरोपमुक्त करने के 31 मई 2005 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए दो फरवरी, 2018 को उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की थी। शीर्ष अदालत ने दो नवंबर 2018 को मामले में सीबीआई की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें उसने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में 13 साल की देरी पर माफी मांगी थी।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि अपील दायर करने में 4,500 दिनों की देरी को लेकर माफी के संबंध में सीबीआई के जवाब से वह संतुष्ट नहीं है। हालांकि शीर्ष अदालत में अब भी एक अपील पर सुनवाई चल रही है, जिसमें जांच एजेंसी एक प्रतिवादी है। शीर्ष अदालत ने दो नवंबर, 2018 को कहा था कि मामले में जांच एजेंसी प्रतिवादी के तौर पर सहायता कर सकती है।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि सीबीआई मामले में वकील अजय अग्रवाल की ओर से दायर याचिका पर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सभी बुनियादी बातों को उठा सकती है। अग्रवाल ने इस फैसले को चुनौती भी दी थी। उत्तर प्रदेश के रायबरेली से लोकसभा का टिकट नहीं दिए जाने के कारण अग्रवाल इस समय भाजपा के बागी नेता बने हुए हैं। सीबीआई द्वारा 90 दिन की अनिवार्य अवधि में अपील दायर नहीं करने पर उन्होंने 2005 में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी।