लोकतंत्र में हर चुनाव और हर वोट का महत्व होता है। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार और महाराष्ट्र में चुनाव जीतकर भी सत्ता से बेदखल होना भाजपा की ऐसी रणनीतिक चूक है जिसकी टीस वह लंबे समय तक महसूस करेगी। एक कहावत है कि हार के पक्ष में कोई तर्क नहीं हो सकता है और जीत के खिलाफ कोई तर्क नहीं चलता।
मसलन जो जीता वही सिकंदर। इस लिहाज से झारखंड में कांग्रेस और जेएमएम को स्पष्ट बहुमत मिला है और अब अगले पांच साल तक झारखंड के विकास और पुननिर्माण का दायित्व इसी गठबंधन के जिम्मे है। जहां तक भाजपा की हार की बात है तो यह लोकप्रिय मतों के बजाय समीकरणों के कारण हुई है। अगर भाजपा राजनीतिक समीकरण दुरुस्त कर लेती तो न महाराष्ट्र में उसे सत्ता गंवाना पड़ता और न झारखंड में चुनावी हार होती। भारतीय जनता पार्टी को 2014 के विधानसभा चुनाव में 31.6 प्रतिशत वोट और 37 सीटें मिली थीं जबकि इस चुनाव में उसके मतों का प्रतिशत बढ़कर 33.6 फीसद हो गया, लेकिन सीटों की संख्या घटकर 25 रह गयी।
इस तरह उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा। चुनावी हार के बावजूद इसे एंटी इन कम्बैसी या फिर मतदाताओं की भारी नाराजगी के रूप में स्थापित नहीं किया जा सकता है। क्योंकि एक तो भाजपा को पिछले बार की तुलना में करीब सवा दो फीसद अधिक वोट मिले हैं और दूसरे कांग्रेस व जेएमएम के साझा मतों से भी अधिक वोट बीजेपी को अकेले मिले हैं। इसलिए अगर मतदाताओं में नाराजगी होती तो भाजपा को इतने वोट नहीं मिलते, लेकिन चुनाव के पहले जिस तरह भाजपा के बड़े नेताओं और बागी विधायकों ने विद्रोह किया और आजसू के साथ अंतिम क्षणों में उसका गठबंधन टूट गया उसके चलते भाजपा को विपरीत परिणाम देखने पड़े हैं। चुनाव में बेहतर परिणाम के लिए अपनी पार्टी की लोकप्रियता के साथ ही मतों के धु्रवीकरण के लिए छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन भी जरूरी होता है।
हालांकि कई बार गठबंधन के छोटे दल बड़ी पार्टियों को ब्लैकमेल भी करते हैं। इससे अगर सत्ता मिल भी जाये तो भी पार्टी कमजोर होती है। संभवत: इसी रणनीति के तहत भाजपा ने उत्तर प्रदेश में छोटे दलों से पिंड छुड़ाया और झारखंड में भी वह अजसू को ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं हुई। हालांकि इसी के चलत ेपार्टी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा, लेकिन उसकी जमीन पूरी तरह बचा हुई है। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा और उसके पूर्व सहयोगी रहे दलों का वोट प्रतिशत साझा तौर पर करीब 48 फीसद के करीब है जबकि कांग्रेस-जेएमएम, आरजेडी का साझा वोट 35 फीसद के करीब है।
वोटों के लिहाज से इतना आगे होते हुए भी अगर सीटें नहीं निकलीं तो इसके पीछे चुनावी समीकरण, गठबंधन का टूटना और कांग्रेस-जेएमएम के पक्ष में वोटों का धु्रवीकरण है। बहरहाल चुनाव परिणाम आ गये हैं और जेएमएम-कांग्रेस को बहुमत मिला है। अगले कुछ दिनों में झारखंड को नयी सरकार मिल जायेगी और उम्मीद करनी चाहिए कि कांग्रेस-जेएमएम गठबंधन झारखंड की जनता को कि नयी सरकार झारखंड को प्रगतिशील सरकार देने में सफल होगा।