वातावरण का प्रभाव

हमारे शरीर, स्वास्थ्य और प्राकृतिक संरचना पर वातावरण का जबरदस्त प्रभाव देखने को मिलता है। पशुओं, वनस्पतियों और खनिज पदार्थों तक में वातावरण की भिन्नता के आधार पर उनके स्तर का परिचय मिलता है। एक देश के पशुओं का दूसरे देश के वालों की तुलना में न केवल आकृति में अंतर पड़ जाता है, वरन उनकी श्रमशक्ति, दूध देने आदि की क्षमताओं में भी अंतर होता है। भेड़ों की ऊन में पाई जाने वाली भिन्नताएं उन क्षेत्रों के वातावरण से संबंधित होती हैं।

पहाड़ी कुत्ते और देशी कुत्तों में काफी प्राकृतिक भिन्नता पाई जाती है। ऋतु प्रभाव सहन करने की क्षमता भी उस क्षेत्र पर छाई रहने वाली सूक्ष्म विशेषताओं से ही संबंधित होती है। सर्दी वाले इलाके में जन्मे प्राणी सर्दी की और गर्म देशों के निवासी गर्मी की अधिकता को भी शांतिपूर्वक सहन कर लेते हैं जबकि भिन्न परिस्थितियों में जन्म लेने वालों के लिए परिवर्तन के साथ तालमेल बिठाना कठिन पड़ता है। तेज वाहनों पर सफर करने वाले अक्सर स्वास्थ्य में गड़बड़ी पड़ने की शिकायत करते रहते हैं।

इसका कारण वातावरण में परिवर्तन की तीव्रता का शरीर की सहन शक्ति के साथ ही ठीक तरह तालमेल न बैठ सकना ही होता है। जड़ी-बूटियां, घास वनस्पतियां, फल-फूल आदि के आकार, गंध, स्वाद आदि में अंतर पाया जाता है। विभिन्न क्षेत्र में उत्पन्न हुई औषधीयों का नाम रूप एक होने पर भी उनके रसायनों और गुणों में असाधारण अंतर दीख पड़ता है। पक्षियों से लेकर कीड़े मकोड़े तक की आकृति प्रकृति में अंतर देखा गया है। सांप, बिच्छू, छिपकली, मकड़ी आदि के विषों में पाया जाने वाला अंतर यों दीखता है तो जातिगत है, पर वे जातिगत विशेषताएं भी मूलतया वातावरण की ही प्रतिक्रिया होती हैं।

अनेकों देशों की, क्षेत्रों की परिस्थितियां, प्रथाएं और मान्यताएं, रुचियां और सांस्कृतियां भिन्न-भिन्न होती हैं। उनमें जो बालक उत्पन्न होते हैं वे वातावरण के प्रभाव से उसी प्रकार की मनोवृत्ति और प्रकृति अपनाते चले जाते हैं। उनके चिंतन स्वभाव और क्रियान्वयन लगभग वैसे ही होते हैं जैसे कि उसे प्रदेश के में रहने वाले लोगों के। बहुमत का दबाव पड़ता है तो अल्पमत अनायास ही बहुतों का अनुकरण करने लगते हैं। समय का प्रभाव युग प्रवाह इसी को कहते हैं।

सर्दी-गर्मी का मौसम बदलने पर प्राणियों के वनस्पतियों के तथा पदार्थों के रंग ढंग ही बदल जाते हैं। गतिविधियों में ऋतु के अनुकूल बहुत कुछ परिवर्तन होते हैं। विज्ञानवेत्ता जानते हैं कि पृथ्वी पर जो कुछ विद्यमान है और उत्पन्न, उपलब्ध होता है, वह सब अनायास ही नहीं है और न उस सबको मानवी उपार्जन कह सकते हैं। यहां ऐसी बहत कुछ होता रहता है जिसमें मनुष्य का नहीं वरन सूक्ष्म शक्तियों का हाथ होता है।

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