बिरजू महाराज कथक संस्थान, लखनऊ संस्कृति विभाग
लखनऊ। बिरजू महाराज कथक संस्थान, लखनऊ संस्कृति विभाग, उ.प्र. द्वारा आयोजित कथक संध्या का आयोजन वाल्मीकि प्रेक्षागृह में किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ अध्यक्ष डॉ. कुमकुम धर, उपाध्यक्ष डॉ मिथिलेश तिवारी तथा मुख्य अतिथि आत्मप्रकाश मिश्र, कार्यक्रम प्रमुख, दूरदर्शन, उत्तर प्रदेश द्वारा दीपप्रज्जवलन से किया गया।
नृत्य प्रस्तुति मंगलाचरण का शुभारम्भ बिरजू महाराज कथक संस्थान के विद्यार्थियों ने महाराज के ही द्वारा स्वरबद्ध की गयी रचना कृष्ण वन्दना भजे बृजे कमण्डलम पर भावपूर्ण प्रस्तुति से की। वन्दना के अंतर्गत भगवान श्री कृष्ण जी के सुन्दर स्वरूप का वर्णन कथक नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। तत्पष्चात् शुद्ध पारम्परिक कथक नृत्य के अंतर्गत तीनताल 16 मात्रा में निबद्ध षिवपरन्, तोड़े, टुकड़े, तिहाई, भ्रमरी आदि का सुन्दर प्रस्तुतिकरण किया गया। जिसमें नृत्य निर्देषन व पढ़ंत संस्थान की कथक प्रषिक्षिका श्रीमती उपासना दीक्षित तथा तबला पर श्री आनन्द दीक्षित द्वारा संगत की गयी। विद्यार्थियों के नाम:- आकांक्षा श्रीवास्तव, मानसी गिरि, रिद्म श्रीवास्तव, स्वास्ति सांकृत, अंष पाण्डेय, वैष्णवी यादव।
कथक संध्या की द्वितीय श्रृंखला के अन्तर्गत डॉ. अभय शंकर मिश्रा, नई दिल्ली द्वारा कथक नृत्य कार्यक्रम की सौन्दर्यपूर्ण प्रस्तुति दी गयी। डॉ. अभय शंकर मिश्रा कथक नृत्य जगत का एक प्रतिष्ठित नाम हैं आप एक कुशल कोरियोग्राफर, शिक्षक और आकर्षक कलाकार के रूप में प्रख्यात है। दूरदर्शन के कलाकार होने के साथ ही देश-विदेश के विभिन्न मंचों पर अपनी अनुपम प्रस्तुतियों द्वारा आप विभिन्न राष्ट्रीय एंव अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों द्वारा सम्मानित होते रहे हैं। आपने 2001 से 2016 तक लंदन के भारतीय विद्या भवन में कथक विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया। तदेपरान्त 2016 में दिल्ली लौटने पर कथक की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए शंकर संगीत एवं नृत्य सोसायटी की स्थापना की।
प्रस्तुति के अगले चरण में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामायण के उत्तरकाण्ड से लिया गया भगवान षिव की महिमा को दर्शाते हुए रूद्राष्टकम् जो कि राग भैरव चारताल में निबद्ध प्रस्तुत किया गया। इसके पष्चात् शुद्ध पारम्परिक कथक नृत्य के अन्तर्गत विलम्बित तीनताल में आमद, परन, उपज, चैपल्ली, तोड़े, टुकड़े, परमेलु, इत्यादि प्रस्तुत किये गये।
इसी श्रृंखला के अंतर्गत धमार ताल मध्य लय में धमार की प्रस्तुति दी गयी। इसी क्रम में राग भूपाली में निबद्ध सूफी संत कबीरदास जी द्वारा रचित दोहों को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया।
अंतिम प्रस्तुति के रूप में तीनताल द्रुत लय में विभिन्न घरानों की बंदिषे, टुकड़े, परन, तिहाई, लड़ी एवं कवित्त इत्यादि प्रस्तुत किये गये। अंत में मुख्य अतिथि द्वारा कलाकारों का सम्मान किया गया।