कथक के जरिए कलाकारों ने लच्छू महाराज को किया नमन

राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में हुआ आयोजन
लखनऊ। बिरजू महाराज कथक संस्थान, लखनऊ एवं भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय, लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित गुरू स्मरण लखनऊ घराने के आचार्य गुरू लच्छू महाराज जी की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें समर्पित कार्यक्रम का आयोजन राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह, कैसरबाग में किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथि डॉ. अनिल रस्तोगी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं रंगकर्मी, कुलपति, भातखण्डे संस्कृति वि.वि., प्रो. (डॉ.) माण्डवी सिंह, अध्यक्ष डॉ. कुमकुम धर उपाध्यक्ष डॉ. मिथिलेष तिवारी, विषेष सचिव, संस्कृति-निदेशक, संजय कुमार सिंह एवं सहायक निदेशक-कोषाध्यक्ष, तुहिन द्विवेदी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं आचार्य गुरू लच्छू महाराज की प्रतिमा पर माल्यार्पण से किया गया।
प्रस्तुति के प्रथम चरण में आदि गुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित गुरू अष्टकम की प्रस्तुति संस्थान के विद्यार्थियों द्वारा की गयी, जिसके बोल है शरीरं स्वरूपं तथा व कलत्रं। जिसमें मीना वर्मा का संगीत निर्देषन तथा तबला संगत श्री नितीष भारती का रहा। विद्यार्थियों के नाम- श्रीया, शीलू, स्वस्ति, मानसी, दीवा, आराधना यादव, स्वर्णिमा, आराधना सिंह, शिखा, अवीहा, प्रतिमा एवं रंजना। कार्यक्रम के अगले चरण में लखनऊ घराने के यशस्वी आचार्य गुरू लच्छू महाराज जी पर आधारित वृत्त चित्र, जिसमें पं. लच्छू महाराज जी के कथक जगत के योगदान से सम्बन्धित तथा उनके द्वारा कथक के लखनऊ घराने की बारीकियों जैसे कथक के लास्य अंगों के संचालन को दशार्ते हुए उनके द्वारा विभिन्न फिल्मों में नृत्य निर्देशन जैसे- मुगल-ए-आजम, पाकिजा, काला पानी, तीसरी कसम आदि के चित्रण के माध्यम से प्रदर्षित किये गये। तत्पश्चात प्रो. (डॉ.) माण्डवी सिंह, कुलपति भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन के माध्यम से कथक जगत से जुड़े विद्यार्थियों, समस्त कथक प्रेमियों एव रंगकर्मियों को आचार्य लच्छू महाराज जी के जीवन एवं उनके कथक नृत्य की बारिकियों से अवगत कराते हुए अपने विचारों को साझा किया। कार्यक्रम के अन्तिम चरण में डॉ. रूक्मिणी जायसवाल, वाराणसी एवं साथी कलाकारों द्वारा राग शंकरा चैताल में निबद्ध शिवस्तुति जय महेश जटाजूट कंठ सोहे कालकूट की प्रस्तुति दी गयी। तत्पश्चात बिंदादीन महाराज जी द्वारा रचित राग पहाड़ी में निबद्ध दादरा छोड़ो-छोड़ो बिहारी नारी देखे सगरी प्रस्तुत किया गया। समापन राग सूर मल्हार पर आधारित बंदिश बादरवा बरसन को आये से किया गया।

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