संगीत नाटक अकादमी में नाटक का मंचन
लखनऊ। निसर्ग की प्रस्तुति नाटक आदिशक्ति रामशक्ति का मंचन संगीत नाटक अकादमी में किया गया। नाटक का लेखन व निर्देशन ललित सिंह पोखरिया ने किया है। नाटक आदिशक्ति रामशक्ति आसुरी शक्ति के विनाश के लिए स्वंय के भीतर दैवीय शक्तियों के जागरण का संदेश देता है।
सनातन संस्कृति के दर्शन और मूल्यों पर बाहरी भीतरी आसुरी शक्तियों के प्रकोप को दैवीय शक्तियों से पराजित किया जा सकता है। ‘आदिशक्ति रामशक्ति नाटक मयार्दा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के द्वारा असुरराज रावण के विनाश हेतु अपने भीतर दैवीय शक्ति के जागरण को प्रस्तुत कर भारतवर्ष के जन-जन को इस कार्य के लिए प्रेरित करता है। यह नाटक भारतवर्ष के भीतरी और बाहरी नकारात्मक तत्वों के द्वारा सनातन संस्कृति में वर्ग-भेद और जाति-भेद फैलाने की बुध को नष्ट करने का सन्देश देता है।
राम द्वारा युद्ध में अनेक दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने के पश्चात् भी रावण अपराजेय ही रह जाता है। राम की सेना घायल और मूर्चित होती रहती है। इस बात से राम बहुत ही गहन चिन्ता और शोक में डूब जाते हैं। राम को लगता है कि अवश्य ही सृष्टि की आदिशक्ति रावण की ओर से गुद्ध कर रही है। उनका यह दुख सेना के सामने प्रकट हो जाता है। तब हनुमान क्रोधित होकर देवी से युद्ध करने के लिए आकाश को उड़ जाते हैं। देवी और हनुमान का भयंकर युद्ध होता है जिसे देखकर शंकर देवी को सचेत करते हुए कहते हैं कि इस युद्ध से आकाश में बहुत उथल-पुथल हो जाएगी लेकिन हनुमान को पराजित कर पाना असम्भव है। तुम भी अंजना का रूप धारण करो। हनुमान के क्रोध को शान्त कर उसे पुन: पृथ्वी पर श्री राम के पास भेजो। देवी माँ अंजना का रूप धरकर हनुमान को समझाती है। माँ के द्वारा समझाये जाने के पश्चात् हनुमान पृथ्वी पर पहुंचकर श्री राम के चरणों में गिर पड़ते हैं। तब विभीषण राम को उनके और उनकी सेना के पराक्रम की स्मृति दिलाते हैं। इसी प्रकार जामवन्त भी श्री राम को समझाते हैं। सभी सैनिक युद्ध में पूरा पराक्रम दिखलाने का संकल्प लेते हैं। जामवन्त राम से विशेष रूप से कहते हैं रावण ने आराधना से जो शक्ति प्राप्त की है। आप उससे अधिक दृढ़ आराधना करके और अधिक शक्ति अर्जित कर रावण को पराजित कर सकते हैं। आप देवीदह नामक स्थान पर पाये जाने वाले एक सौ आठ विशेष कमल पुष्पों से शक्ति जागरण के लिए विशेष पुरश्चरण करें। लक्ष्मण सहित हम सभी लोग रावण से युद्ध करते रहेंगे आप उसकी चिन्ता मत करें। तब हनुमान देवीदह से एक सौ आठ विशेष कमल ले आते हैं। आदिशक्ति के गहन ध्यान में लीन होकर राम जब पुरुश्चरण में एक सौ सात कमल पुष्प अर्पित कर चुके होते हैं तो देवी चुपके से आकर अन्तिम कमल पुष्प उठाकर अन्तर्ध्यान हो जाती है। राम पुष्प न पाकर शोक में व्याकुल हो जाते हैं। सहसा उन्हें स्मरण हो आता है कि माँ कौशल्या उन्हें राजीवनयन अर्थात् कमलनयन कहा करती थी। इस प्रकार उनके पास अभी दो कमल शेष हैं। तब राम अपनी दायीं आँख चढ़ाने के लिए जैसे ही उस पर तीर लगाते हैं. देवी प्रकट होकर राम के हाथ से तीर ले लेती हैं और राम को विजयी होने का वरदान देती हैं। नाटक में अहम भूमिका सुमित श्रीवास्तव, अभिषेक सिंह, ज्योति सिंह, अंकित श्रीवास्तव, दर्शन जोशी, अभ्युदय तिवारी, हेमन्त सिंह, रजत के राजवंशी, केडी जोशी आदि ने किया।