शांतिनिकेतन (कोलकाता)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बृहस्पतिवार को आत्मनिर्भर भारत अभियान को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के दृष्टिकोण का सार बताया और कहा कि यह विश्व कल्याण के लिए भारत के कल्याण और उसे सशक्त करने के साथ विश्व में समृद्घि लाने का भी मार्ग है। पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी विश्वविद्यालय से निकले संदेश आज पूरे विश्व तक पहुंच रहे हैं और भारत आज अंतरराष्ट्रीय सौर अलायंस के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में विश्व का नेतृत्व कर रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत आज इकलौता बड़ा देश है जो पेरिस समझौते के पर्यावरण के लक्ष्यों को प्राप्त करने के सही मार्ग पर है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी इस समारोह के दौरान उपस्थित थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि वेद से विवेकानंद तक भारत के चिंतन की धारा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवाद के चिंतन में मुखर थी। उन्होंने कहा, उनका दृष्टिकोण था कि जो भारत में सर्वश्रेष्ठ है, उससे विश्व को लाभ हो और जो दुनिया में अच्छा है, भारत उससे भी सीखे। आपके विश्वविद्यालय का नाम ही देखिए, विश्व-भारती। मां भारती और विश्व के साथ समन्वय।
उन्होंने कहा, विश्व भारती के लिए गुरुदेव का विजन आत्मनिर्भर भारत का भी सार है। आत्मनिर्भर भारत अभियान भी विश्व कल्याण के लिए भारत के कल्याण का मार्ग है। ए अभियान, भारत को सशक्त करने का अभियान है, भारत की समृद्धि से विश्व में समृद्घि लाने का अभियान है। उन्होंने कहा कि गुरुदेव ने स्वदेशी समाज का संकल्प दिया था और वह गांवों तथा कृषि को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे। उन्होंने कहा, वह वाणिज्य, व्यापार, कला, साहित्य को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे।
उन्होंने आजादी के आंदोलन और उसके बाद विश्व बंधुत्व को बढ़ावा देने में विश्व भारती विश्वविद्यालय की सराहना की और साथ ही छात्रों से वोकल फॉर लोकल अभियान से जुडऩे का आह्वान किया। विश्वविद्यालय परिसर में प्रतिवर्ष लगने वाले पौष मेले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, जब हम आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हैं तो विश्वभारती के छात्र-छात्राएं पौष मेले में आने वाले कलाकारों की कलाकृतियां ऑनलाइन बेचने की व्यवस्था करें। इससे उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कला, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान और नवाचार में इस विश्वविद्यालय की उपलब्धयों की भी जमकर सराहना की। भारत की आजादी के आंदोलन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि भक्ति आंदोलन ने भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने का काम किया था। उन्होंने कहा, भक्ति आंदोलन के साथ-साथ देश में कर्म आंदोलन भी चला। भारत के लोग गुलामी और साम्राज्यवाद से लड़ रहे थे। चाहे वो छत्रपति शिवाजी हों, महाराणा प्रताप हों, रानी लक्ष्मीबाई हों, कित्तूर की रानी चेनम्मा हों, भगवान बिरसा मुंडा का सशस्त्र संग्राम हो।
उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा, भारत की आत्मनिर्भरता और भारत का आत्मसम्मान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और भारत के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए तो बंगाल की पीढय़िों ने खुद को खपा दिया था। इस कड़ी में उन्होंने खुदी राम बोस से लेकर बंगाल के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया। उन्होंने विश्वभारती की सौ वर्ष की यात्रा को बहुत विशेष बताया और कहा कि यह विश्वविद्यालय माँ भारती के लिए गुरुदेव के चिंतन, दर्शन और परिश्रम का एक साकार अवतार है।
उन्होंने विश्वविद्यालय को भारत के लिए देखे गए टैगोर के सपने को मूर्त रूप देने और देश को निरंतर ऊर्जा देने वाला आराध्य स्थल बताया। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1921 में स्थापित विश्व भारती, देश का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर पश्चिम बंगाल की प्रमुख हस्तियों में गिने जाते हैं। पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। वर्ष 1951 में विश्व भारती को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था और उसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में शुमार किया गया था। प्रधानमंत्री इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति होते हैं।