लखनऊ। सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए एक ओर जहां डॉक्टर ढूढ़े नहीं मिल रहे हैं वहीं 750 डॉक्टर इसे सेफ जोन की तरह इस्तेमाल कर गायब हो गये। इनमें से किसी ने मोटी पगार मिलने पर निजी अस्पताल का दामन थाम लिया तो कोई यहां से पीजी करने के बाद कहीं और अपना भविष्य तराश रहा है। सालों से नदारद चल रहे इन डॉक्टरों को अब बर्खास्त करने की तैयारी है।
दरअसल एमबीबीएस करने के बाद सरकारी नौकरी हमेशा से ही पहली च्वाइस रही है। ऐसे में इन डॉक्टरों को प्रान्तीय चिकित्सा सेवा संघ पीएमएस में आने का मौका मिला तो इन्होंने फौरन ज्वाइन कर लिया। कुछ दिन नौकरी की। फिर यही रहकर स्नातकोत्तर यानि पीजी किया और बेहतर विकल्प मिलते ही निकल लिये। मालूम हो कि एमबीबीएस पास डॉक्टरों को एक वर्ष की सेवा करने पर नीट-पीजी में 10 प्रतिशत, दो वर्ष पर 20 प्रतिशत और तीन वर्ष या इससे अधिक की सेवा होने पर अधिकतम 30 प्रतिशत वेटेज मिलता है। ऐसे में इसका लाभ लेकर पीजी किया और फिर निकल गए। कुछ ऐसे पीजी पास डॉक्टर हैं, जिन्होंने सीधे लेवल टू यानी विशेषज्ञ डॉक्टर के रूप में नौकरी ज्वॉइन की थी, लेकिन बाद में यहां का कम वेतन और काम ही अधिकता के चलते उन्हें प्राइवेट संस्थान इससे बेहतर लगे। उन्होंने नौकरी छोड़ने की जानकारी देना भी विभाग को जरूरी नहीं समझा।
वहीं स्वास्थ्य विभाग इन पर र्कारवाई करने को इस कारण भी टालता रहा कि वह पहले से ही डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। अब जबकि कई बार नोटिस देने के बाद भी इन डाक्टरों की ओर से कोई जवाब मिल रहा है, तो विभाग के पास इनको बर्खास्त करना ही आखिरी विकल्प बचा है। स्वास्थ्य विभाग की महानिदेशक डॉ रेनू श्रीवास्तव का कहना है कि गायब डॉक्टरों की सूची हर जिले से तलब की गयी थी और लापता डॉक्टरों को नोटिस दिया गया। अब बर्खास्तगी की सिफारिश शासन को भेजी गई है। स्वास्थ्य विभाग में ज्यादातर डॉक्टर बिना जानकारी नौकरी छोड़कर प्राइवेट अस्पतालों में चले गए हैं। स्वास्थ्य विभाग की जांच में यह भी सामने आ रहा है कि कुछ डॉक्टर गायब होने के बावजूद जिलों में मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से सांठगांठ कर वेतन ले रहे हैं। बहरहाल यह पहला मामला नहीं है इससे पहले भी वर्ष 2010 में भी ऐसे करीब 180 डॉक्टरों को बर्खास्त किया गया था। उस समय जो सूची तैयार हुई थी उसमें 10 वर्ष से गायब चल रहे डॉक्टरों के नाम शामिल थे।