- पुण्यतिथि (3-08-2019) पर विशेष लेख
महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राष्ट्रभक्त और भारत भूमि से अंग्रेजों के पांव उखाड़ फेंकने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में अपनी पूरी शक्ति के साथ संघर्ष करने वाले बाबू बनारसी दासजी का जन्म 8 जुलाई 1912 को ग्राम उटरावली, जनपद बुलंदशहर में एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई। तदोपरान्त उनकी शिक्षा राजकीय हाई स्कूल बुलंदशहर मे हुई। उनका विवाह 15 फरवरी 1936 में श्रीमती विद्यावती देवी के साथ हुआ। श्रीमती विद्यावती ने आजीवन एक आदर्श पत्नी के रूप में बाबू बनारसी दासजी को सहयोग दिया और सदैव उनकी प्रेरणा स्रोत रहीं। बाबूजी के दो भाई और दो बहनें थी। बड़े भाई का नाम मंगल सैन तथा छोटे भाई का नाम हर गुलाल गुप्ता और बहन रामो देवी तथा बस्सो देवी थीं। सन 1930 से 1942 तक बाबूजी एक बहादुर स्वतंत्रता संग्राम सेननी के रूप में अत्याचारी ब्रिटिश सरकार से टक्कर लेते रहे। 1930 में गांधीजी के आहवान पर उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और 12 सितम्बर 1930 को उन्हें बंद कर दिया गया। उनको 2 माह का कठोर कारावास भोगना पड़ा।
जेल से बाहर आकर उन्होंने ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कर पूर्ण स्वराज की मांग की। 1932 में उन्होंने हरिजनोद्धार का कार्य अपने हाथ में लिया और अंग्रेजों की पृथक हरिजन निर्वाचन योजना का घोर विरोध किया। 1932 से लेकर 1936 तक बाबू बनारसी दास वृंदावन के ‘कपटिया कुंज’ के क्रांतिकारी प्रशिक्षण केन्द्र से भी सम्बद्ध रहे। 1932 में उनको पुन: 5 माह का कठोर कारावास हुआ। 1936 में प्रांतीय स्वशासन देने हेतु सरकार ने आम चुनाव कराये। पं. जवाहर लाल नेहरू भी उस समय बुलंदशहर आये। बाबू बनारसी दास ने कांग्रेस की विजय के लिए अपने साथी बहोरी सिंह, हरकेश सिंह, पं. चुन्नी लाल, ईश्वरी सिंह, ठाकुर बलभद्र सिंह, मगन लाल, पं. छुट्टन लाल, देवदत्त शर्मा, दीन दयाल शर्मा, भूदेव सिंह, रोशन लाल गुप्ता, यादराम आलू वाला तथा अन्य ने उनके साथ रात दिन घोर परिश्रम किया जिसके फलस्वरूप बुलंदशहर जनपद की समस्त सीटों पर कांग्रेस को विजय मिली। 1940 में कांग्रेस के आह्वान पर व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू हुआ जिसमें बनारसी दासजी ने सक्रियता से भाग लिया।
2 अप्रैल 1941 को वह गिरफ्तार कर लिये गये और 9 माह का कठोर कारवास दिया गया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बाबू बनारसी दास दलबल सहित बड़े जोश के साथ कूद पड़े। समस्त सत्याग्रहियों के साथ उनको भी गिरफ्तार करके बुलंदशहर जेल में बंद कर दिया गया। तत्कालीन कलेक्टर मि. हार्डी ने रात 12 बजे समस्त बंदी सत्याग्रहियों को घोर अमानुषिक दण्ड दिया। बाबूजी के कपड़े उतरवाकर कलेक्टर हार्डी ने जामुन के पेड़ में बांधकर 10 बेतों की सजा देने के बजाय बेहोश होने तक उन पर बर्बतापूर्वक लाठियों से प्रहार किया किन्तु बाबू बनारसी दासजी ने सच्चे देशभक्त की तरह घोर उत्पीड़न को सहर्ष सहन किया और उफ तक नहीं की। उनको दो वर्ष तक कठोर कारवास का दण्ड दिया गया। घर वालों को उत्पीड़न, कुर्की और तरह-तरह की पीड़ा दी गई। बाबूजी स्वतंत्रता संग्राम में बुलंदशहर जिले की जलती हुई चिंगारी थे, जो उत्पीड़न के बाद भी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए। बाबू बनारसी दास 1936 में बुलंदशहर जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री बने। सन 1946 में अध्यक्ष तथा 1946 से लेकर 1960 तक उ.प्र. कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य और 1960 से 1969 तक उ.प्र. कांग्रेस कमेटी के महामंत्री रहे। वह 30 वर्ष तक एआईसीसी के सदस्य रहे। 1969 में कांग्रेस विभाजन के समय आप संगठन कांग्रेस में अध्यक्ष भी रहे।
बाबू बनारसी दास इतने लोकप्रिय थे कि 1946 में विधानसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए। आजादी के बाद बाबूजी सन 1952, 62, 67, 77 में विधानसभा के लिए चुने गये तथा इस दौरान संसदीय सचिव एवं सहकारिता मंत्री के रूप में अपनी प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया। 1972 में राज्यसभा के सदस्य बने और 1977 में वह उ.प्र. विधानसभा के अध्यक्ष बनाये गये। 28 फरवरी 1979 को वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री के रूप में बाबूजी ने स्वयं को एक कुशल प्रशासक सिद्ध किया।
अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बाबूजी ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए। अलीगढ़ दंगा, छात्र अनुशासनहीनता, विद्युतकर्मियों की हड़ताल आदि समस्याओं को कुशलता से सहज ही निपटा दिया। प्रदेश में सड़कों का जाल बिछाकर उन्होंने प्रदेश के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। श्रीमती इंदिरा गांधी की शहादत के उपरांत राजीव गांधी के नेतृत्व में आप 22 नवम्बर 1984 को लाखों समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये। श्री राजीव गांधी ने बाबूजी से बुलंदशहर से लोकसभा चुनाव लड़ने का आग्रह किया परंतु बाबूजी ने स्वास्थ्य कारणों से अनिच्छा जाहिर कर त्याग की मिसाल कायम की। राजनीतिक आकाश पर अपनी पताका फहराने वाले बाबू बनारसी दासजी ने 3 अगस्त 1985 को शाम 4.25 बजे इस नश्वर संसार को सदा के लिए त्याग दिया।
बाबूजी ने शिक्षा क्षेत्र को आगे बढ़ाने हेतु अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी डा. अखिलेश दास गुप्ता को अपने मिशन को पूरा करने लिए प्रेरित किया। बाबूजी अपने जीवन काल में ही अपने प्रिय पुत्र डा. अखिलेश दास गुप्ता को राजनीति में बढ़ाना चाहते थे। उनके आशीर्वाद से डा. अखिलेश दास गुप्ता जी केन्द्रीय मंत्री, लखनऊ के महापौर एवं सांसद बने और बाबूजी का जो सपना था उसे पूरा करने का बीड़ा उठाया जिसका परिणाम है कि आज डा. अखिलेश दास गुप्ता जी के अथक प्रयासों से लखनऊ में बाबू बनारसीदास विश्वविद्यालय, बाबू बनारसी दास इंजीनियरिंग कॉलेज, नार्दन इंडिया इंजीनियरिंग कॉलेज एवं डेंटल कालेज की स्थापना।
डा. अखिलेश दास गुप्ताजी के शिक्षा प्रसार मिशन में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अलका दास, पुत्र श्री विराज सागर दास और पुत्री सोना दास ने भी बखूबी साथ दिया। उनका प्रयास नयी पीढ़ी के लिए शिक्षा के अभियान को अंतर्राष्टÑीय स्तर तक पहुंचाना है। डा. अखिलेश दास जी के आकस्मिक निधन के पश्चात् श्री विराज सागर दास बीबीडी ग्रुप के प्रेसीडेंट का पदभार संभाल रहे हैं और अपने पूज्य पिता डा. अखिलेश दास गुप्ताजी के मिशन को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। डा. अखिलेश दास-अलका दास फाउण्डेशन द्वारा समाज सेवा के कार्य को आगे बढ़ाया जा रहा है। लखनऊ में जलसेवा, कड़ाके की ठण्ड में अलाव, पौधारोपण, स्वच्छता, रक्तदान शिविर, एम्बुलेंस सेवा, हेल्थचेकअप जैसे सामाजिक कार्यों में डा. अखिलेश दास-अलका दास फाउण्डेशन बढ़-चढ़कर कार्य करके सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा समर्पित रहता है। सिविल अस्पताल में मरीजों-तीमारदारों के लिए चाय सेवा लंबे समय से डा. अखिलेश दास-अलका दास फाउण्डेशन द्वारा चलाया जा रहा है। राजनीतिक आकाश पर अपनी पताका फहराते हुए बाबू बनारसी दासजी का नश्वर शरीर आज हमारे बीच नहीं है किन्तु उनके महान विचार और आदर्श हमारा मार्गदर्शन करते हैं। आगे आने वाली पीढ़ियां गर्व एवं स्वाभिमान के साथ उनसे प्रेरणा प्राप्त करेंगी। बाबूजी ने सदैव पुरानी पीढ़ी के नेताओं के बलिदानों को अपने जेहन में रखा और उन्हीं का सदैव अनुकरण किया। यही वजह है कि बाबूजी आज भी जनमानस के हृदय में जीवित रूप में विद्यमान हैं। उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब हम उनके पौत्र विराज सागर दास, पौत्री कुमारी सोनाक्षी दास एवं पुत्रवधु श्रीमती अलका दासजी के साथ समर्पण एवं ईमानदारी से जीवन पर्यन्त साथ रहकर हर स्थिति में उनको आगे बढ़ाने का संकल्प लें।