हानि-लाभ कारोबार का अहम हिस्सा होता है। एक साहसी उद्यमी के तौर पर जब आप कारोबार को चमत्कारिक स्तर तक विस्तारित करने का माद्दा रखते हों, तो विपरीत परिस्थितियों में हौसला बनाये रखने की हिम्मत भी आप में होनी चाहिए। हर उद्यम एक जोखिम होता है। एक उद्यमी जब अपने निजी निवेश के साथ दोस्तों, बैंकों और इक्विटी पार्टनर से कर्ज लेकर कारोबार खड़ा करता है, अपने सूझबूझ और कौशल के साथ उसे आगे बढ़ाता है, तो उसमें सफलता के साथ असफलता की संभावना भी बनी रहती है। किसी भी उद्यमी को मानसिक तौर पर इसके लिए तैयार रहना चाहिए। हाल के वर्षों में करीब दर्जन भर से अधिक ऐसी कंपनियां फ्लाप हुई हैं जो कभी अपने-अपने क्षेत्र की ध्वजवाहक हुआ करती थीं। रिलायंस कम्यूनिकेशन, सत्यम कंप्यूटर, जेट एयरवेज, किंगफिशर एयरलाइंस, भूषण स्टील, कोरस स्टील, आईएलएण्ड एफएस, यूनिटेक व गीतांजलि जैसी कंपनियां कभी अपने-अपने क्षेत्र की शान हुआ करती थीं। लेकिन खराब गवर्नेंस, कंपनियों के प्रति प्रमोटर्स की निष्ठा में कमी और बिजनेस साइकल के चलते ये कंपनियां डूब गयीं। इनके प्रमोटर्स कानूनी झमेले में फंस गये और उनकी व्यसायिक छवि को इतना नुकसान पहुंचा कि उनके लिए कारोबार करना जटिल हो गया। इसलिए कारपोरेट्स को भी बदलते वक्त के साथ चलना चाहिए। कभी ऐसा दौर था जब नियमों-कानूनों के कंप्लायंसेस में अगर थोड़ी बहुत शिथिलता भी रह जाती थी तो कोई फर्क नहीं पड़ता था।
आज हर क्षेत्र में एक रेल्यूलेटर है जो नियमन की जिम्मेदारी संभालता है। ऐसे में कहीं भी कारपोरेट गवर्नेंस में कमी रहती है। कंपनियों के फंड का डायवर्जन होता है या फिर नियमों-कानूनों या टैक्स कंप्लांयसेज में कमी रहती है, तो देर-सबेर यह पकड़ में आ जाती है। इससे प्रमोटर्स की छवि को भारी नुकसान होता है। जो कंपनियां शेयर बाजार में लिस्ट होती हैं उनके बारे में एक भी खराब खबर पूरी कंपनी के पूंजीकरण को झटके में स्वाहा कर देती है। इसलिए उद्यमियों को बदलते वक्त के साथ नियमों-कानूनों के दायरे में चलना चाहिए। जहां तक कारोबारी विस्तार की रणनीति है, तो हाल के वर्षों में ऐसे ज्यादातर कारोबार फ्लाप हो गये या हो रहे हैं जिन्होंने कारोबार का एग्रीसिव विस्तार शुद्ध रूप से कर्ज के सहारे किया। इसलिए किसी कारोबार पर कर्ज लेते समय उसकी आय-व्यय की संभावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए।
कारोबारी असफलता से मौत को गले लगाने वाले वी जी सिद्धार्थ ने महज दो दशक में पुश्तैनी कॉफी के व्यवसाय को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलायी थी। 1800 सौ आउटलेट्स, 2000 करोड़ का टर्नओवर और एक दर्जन देशों में मौजूदगी, यह किसी चमत्कारित सफलता जैसी लगती है, लेकिन एग्रीसिव विस्तार में उन्होंने जरूरत से अधिक कर्जभार कंपनियों पर लाद दिया और आखिर में कर्ज के दुष्चक्र में फंसकर उन्होंने हौसला तोड़ दिया। निश्चय ही यह दुखद है। व्यापार से सरकार टैक्स पाती है, युवा रोजगार पाते हैं और बैंक ब्याज पाते हैं, ऐसे में अगर कोई ऐसे दुष्चक्र में फंसता है तो उसकी मदद भी होनी चाहिए। साथ ही उद्यमियों को भी गवर्नेंस के मानकों का पालन करना चाहिए।





